आत्मा क्या है? – वेदों और उपनिषदों की दृष्टि से
“आत्मा” का विचार भारतीय दर्शन और अध्यात्म का मूल स्तंभ है। यह केवल एक धार्मिक शब्द नहीं, बल्कि अस्तित्व की उस सूक्ष्म गहराई का प्रतीक है, जो शरीर, मन और बुद्धि से परे है। आत्मा को समझने के लिए हमें वेदों और उपनिषदों की शरण लेनी होती है — जहाँ आत्मा को ब्रह्म से अभिन्न बताया गया है।
आत्मा की वैदिक परिभाषा
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में आत्मा का उल्लेख एक अमर, अविनाशी, चेतन सत्ता के रूप में किया गया है। यजुर्वेद कहता है:
“अयमात्मा ब्रह्म” — यह आत्मा ही ब्रह्म है।
वेदों के अनुसार आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है, न ही इसे कोई अस्त्र काट सकता है और न अग्नि जला सकती है। यह शुद्ध चेतना है, जो केवल साक्षी भाव से अनुभव करती है।
उपनिषदों की दृष्टि से आत्मा
1. छांदोग्य उपनिषद
यह उपनिषद आत्मा को ब्रह्म का प्रतिबिंब मानता है और कहता है:
“तत् त्वम् असि” — तू वही है (ब्रह्म)।
इसका अर्थ है कि हर जीवात्मा परमात्मा से जुड़ी है, केवल अज्ञानवश वह अपनी दिव्यता भूल जाता है।
2. बृहदारण्यक उपनिषद
यह आत्मा को ‘नेति नेति’ (ना यह, ना वह) की परिभाषा देता है — आत्मा को किसी भौतिक गुण से बांधा नहीं जा सकता।
3. कठ उपनिषद
नचिकेता और यमराज का संवाद आत्मा की अमरता पर केंद्रित है। यमराज कहते हैं:
“न जायते म्रियते वा कदाचित्” — आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
आत्मा और शरीर का संबंध
वेदान्त कहता है कि शरीर आत्मा का ‘अवस्थागत वस्त्र’ है। मृत्यु केवल वस्त्र परिवर्तन है:
“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय” — जैसे पुराने वस्त्र उतारकर नया पहनते हैं, वैसे आत्मा भी शरीर बदलती है।
इस दृष्टि से मृत्यु एक अंत नहीं, एक यात्रा का पड़ाव मात्र है।
आत्मा और पुनर्जन्म
भारतीय दर्शन आत्मा को कर्मों के आधार पर पुनर्जन्म लेने वाली सत्ता मानता है। यह जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसी होती है जब तक उसे मोक्ष (मुक्ति) न मिल जाए।
मोक्ष की स्थिति:
जब आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को जान लेती है, वह शरीर-बुद्धि की पहचान से मुक्त होकर ब्रह्म में विलीन हो जाती है। यही है “आत्मज्ञान”।
आधुनिक जीवन में आत्मा की चेतना
आज के युग में जहाँ भौतिकता हावी है, आत्मा की अनुभूति मनुष्य को स्थिरता, शांति और सच्ची पहचान देती है। योग, ध्यान और सत्संग आत्मा को जानने की दिशा में प्रभावशाली साधन हैं।
निष्कर्ष
वेद और उपनिषद हमें सिखाते हैं कि आत्मा अनंत, अजर, अमर और चेतन शक्ति है। इसे जानना ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। आत्मा का अनुभव कर हम न केवल स्वयं को समझ सकते हैं, बल्कि परम सत्य से भी एकाकार हो सकते हैं।